दुनिया को महकाने वाले परफ्यूम की शुरुआत क्या इत्र से हुई | History and origin of Perfume and ittar

परफ्यूम और इत्र का इतिहास,बनाने की विधि और इनके बीच क्या है अंतर

-ज्योति 
History and origin of Perfume  and ittar
Image by Free-Photos from Pixabay 
  
क्या आप लोगों ने सितम्बर 2006 में Tom Tykver के डायरेक्शन में रिलीज हुई फिल्म Perfume देखी है ? अगर हाँ तो परफ्यूम का नाम लेते ही Rachel Hurd-Wood (परफ्यूम फिल्म की अदाकारा) आपकी आखों के सामने जरूर तैर जाती होंगी। 
    आज कोई भी उत्सव हो या फिर हमारी डेली रूटीन लाइफ परफ्यूम  हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है ।
माना कि परफ्यूम भी आपके क्लास और सोशल स्टैंडर्ड का मानक है परन्तु यह आज आम वर्ग में भी अपनी अच्छी पकड़ बना चुका है
और अहम भूमिका निभा रहा है । 
जिस इत्र परफ्यूम या सुगंध का ताल्लुक पहले पूजा घर तक ही सीमित था वह आज बाथरूम से लेकर किचन ऑफिस हो या बेडरूम हर जगह अपनी पहुँच बना चुका है ।परफ्यूम का इस्तेमाल बड़ी तेजी से बढ़ता जा रहा है । वह चाहे रूम स्प्रे के रूप में हो कैंडल के रूप में हो या फिर हमारी बॉडी पर लगने वाला डियो और परफ्यूम इन सारी चीजों का कहां से प्रारंभ हुआ ?
 

यह खुशबूनुमा चीज़ हमारी जिंदगी में कब आ गई ?

किसने पहली बार इसे बनाया किसने दिमाग में आया होगा परफ्यूम बनाने का ख्याल ,
क्या है इसका इतिहास?

 कौन थे वो पहले शख्स जिन के दिमाग में आया होगा ऐसा धमाकेदार आइडिया
 इन सभी सवालों के जवाब के लिए मैंने यह लेख तैयार किया है और अगर आप भी परफ्यूम के बारे में जानना चाहते हैं तो यह लेख जरूर पढ़ें-

परफ्यूम से भी पहले जन्म लिया इत्र ने , इत्र या बोल चाल की भाषा का अतर एक अरबी भाषा के शब्द 'ओत्र' से बना है जिसका अर्थ होता है खुशबू लगभग सभी धर्मों में इसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
ऐसा माना जाता है कि जंगल में गए चरवाहे खुशबूदार जड़ी बूटियों को ले आये जो जलने के बाद वातावरण को सुगंधित कर देती थीं पूर्व में पूजा पाठ में इस तरह की चीजों का इस्तेमाल शुरू हुआ धार्मिक अनुष्ठान आदि में सुगंधित पुष्प एवं लकड़ी के प्रयोग से दैवीय शक्ति की उपासना से चले क्रम ने ही आधुनिक परफ्यूम को जन्म दिया।

सर्वप्रथम कहाँ बना परफ्यूम-

History and origin of Perfume  and ittar
Photo by Ylanite Koppens from Pexels

सिंधु घाटी सभ्यता से सर्वप्रथम परफ्यूम बनाने के बर्तन प्राप्त हुए हैं जिन्हें देग कहा गया 5000वर्ष पूर्व इनका उपयोग किया गया था। माना जाता है कि पारंपरिक इत्र निर्माता इन बर्तनों के साथ पूरी एशिया में फूलों वाली जगह घूमते रहते थे।




किसने बनाया सबसे पहले परफ्यूम-

यूँ तो परफ्यूम के बारे में अनेक मत हैं तो निश्चित नहीं रूप से सभी एकमत नहीं हैं। अतः पाए गए प्रमाण के अनुसार दुनिया में सबसे पहली परफ्यूम अगर कहीं बनी तो वह निश्चित रूप से मेसोपोटामियन, फारस और मिस्र के लोग ही थे।  
ऐसा माना जाता है कि बेबीलोनिया में ताप्पुती नामक महिला केमिस्ट ने सुगंध, तेल और फूलों को मिलाकर पहला परफ्यूम बनाया था. जो पहले उच्च वर्गो के रोजमर्रा जीवन धार्मिक जीवन काम क्रीड़ा तथा मृतक क्रिया कर्म में उपयोग किया जाता था। 

भारत में कहाँ से आया परफ्यूम-

सबसे पहले परफ्यूम शब्द को जान लेते हैं परफ्यूम एक फ्रेंच भाषा का शब्द है जो फ़ारसी भाषा के शब्द अत्र जिसका अर्थ खुशबू दार तेल है से ही लिया गया है 


ब्रह्मसंहिता में मिलता है इत्र का वर्णन-

सर्वप्रथम छठी शताब्दी में ब्रह्मसंहिता की में एक पूरा का पूरा चैप्टर पर क्यों पर है जिसका नाम है - गन्धयुक्ति
इसमे परफ्यूम बनाने की विधि एवं सामग्री आदि का विस्तृत वर्णन मिलता है।
 आज कन्नौज जो अपने इत्र के लिए विश्व विख्यात है वहाँ भी 7वी सदी में राजा हर्षवर्धन के समय इत्र निर्माण प्रारंभ किया गया जिसकी विधि या तरीका फ़ारसी है आज भी वहां वही विधि से इत्र बनाकर  
 यूरोप तक सप्लाई किया जाता है । इत्र में अल्कोहल की मात्रा नहीं होती जिसकी वजह से यह काफी गाढ़ा होता है और इसकी खुशबू भी ज्यादा देर तक रहती है साथ ही इसे अपने शरीर पर सीधे तौर पर लगाया जाता है। जबकि परफ्यूम में अल्कोहल बहुत अधिक होता है साथ ही पानी और सुगंधित तेल को मिलाया जाता है।


इत्र बनाने की विधि-  

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Image by andreas N from Pixabay 

इत्र को आसवन विधि से बनाया जाता है जिसमे खुशबूदार पौधों की लकड़ियों तथा फूलों को तेल में डुबोकर रखते हैं जब उनकी खुशबू तेल में आ जाती है तो उससे आसवन माध्यम से इत्र में बदल देते हैं।
हैदराबादी निज़ामों को चमेली या जैस्मिन बहुत पसंद आता था।
मुग़ल रानियों को ood /ऊद का इत्र बहुत पसंद आता था।
अबुल फजल की आईने अकबरी में भी जिक्र किया गया है कि अकबर इत्र रोजाना इस्तेमाल किया करते थे।
यहाँ तक कि महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब भी इत्र के बड़े कद्रदान थे जब वो अपनी महबूबा से मिलने गए तो उन्होंने हिना का इत्र लगाया था।
ऐसा माना जाता है कि मुगल बादशाह जहांगीर की पत्नी और प्रेयसी नूरजहाँ ने गुलाबजल का अविष्कार किया था।
पारंपरिक तौर पर पूरी दुनिया में मेहमानों के जाने के वक्त या ईद के मौके पर उन्हें इत्र तोहफे में देने की परंपरा रही है। इत्र को पारंपरिक तौर पर सजावटी और कांच की सुंदर बोतलों में भेंट दिया जाता है। इन सुंदर बोतलों को इत्रदान कहा जाता है। अपने मेहमानों को भेंट में इत्र देने की परंपरा पूर्वी दुनिया के कई हिस्सों में आज भी बदस्तूर जारी है।  


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